रविवार, 8 नवंबर 2009

हिंदी से कमाते हैं, लेकिन बोलते हैं अंग्रेजी


10 वर्ष के संघर्ष का मिला रिजल्‍ट
3 जनवरी 2003 को सुबह 6 बजे टाटा मूरी एक्‍सप्रेस जालंधर सिटी रेलवे स्‍टेशन पर पहुंचती है। प्‍लेटफार्म नंबर एक पर गाडी खडी होती है। उस वक्‍त चारों ओर घने कोहरे की सफेद परत दिखाई दे रही थी। दस फलांग दूर खडे यात्री नजर नहीं आ रहे थे। मै अपना रिबॉक कंपनी का बैग उठाया और नीचे उतरा। चूंकि मै पहली बार जालंधर सिटी पहुंचा था इसलिए हमें ज्‍यादा‍ कुछ जानकारी नहीं थी। ठंड इतनी अधिक थी कि आंख नांक से पानी निकल रहे थे। इससे बचने के लिए एकमात्र सहारा गर्मा गरम चाय थी, जिसकी उस समय जरूरत भी थी। हम चाय की रेहडी की ओर बढे, लेकिन वहां पहले से ही बहुत भीड थी। लोग चाय से लबालब गिलास को दोनों हाथों के बीच कैद करके चुस्कियां ले रहे थे। मैने भी बोला भैया एक कप चाय देना। आसपास खडे लोग पलट कर मेरी ओर बडे आश्‍चर्य से देखे। सभी लोग सरदार थे इसलिए उसमें से एक ने तबाक से बोल दिया कि भैया आ गया। मै वहां की भाषा पंजाबी से अनभिज्ञ था, लिहाजा हमें कुछ समझ में नहीं आया। खैर, चाय पीने के बाद बगल में ही मौजूद पूछताछ खिडकी पर पहुंचे, जहां मैने डारमेट्री के लिए पूछा। वहां मौजूद रेलवे बाबू से हमने हिंदी में कहां भाई साहब हमें दो दिन ठहरना है, क्‍या डारमेट्री मिल जाएगी। बाबू ने अपनी महिला सहकर्मी से हंसकर बोला---लो एक और भैया आ गया। हमने सोचा शायद यहां के लोग भैया सम्‍मान स्‍वरूप बोलते होंगे। खैर उन्‍होंने किराया लिया और चौबीस घंटे के लिए एक बिस्‍‍तर दे दिया। इसके साथ ही मै अखबार के स्‍टाल पर पहुंचा और एक दैनिक जागरण व अमरउजाला खरीदा। उसके बाद कमरे में चला गया। दो घंटे लगाकर मैने दोनों अखबारों को चाट डाला। इससे अंदाजा लग गया कि वहां छपने वाले अखबारों में खबरें कैसे होती हैं और किन ‍शब्‍दों का क्‍या मतलब होता है। उसी दिन शाम को पांच बजे मैं दैनिक जागरण के फोकल प्‍वाइंट कार्यालय पहुंचा। वहां समाचार संपादक श्री कमलेश रघुवंशी से मुलाकात की, जहां उन्‍होंने कल से ज्वाइन को कहा। साथ ही कहा कि कल श्री मनोज तिवारी जी से आकर मिल लेना। शनिवार का दिन था। मै बहुत खुश हुआ और नई पारी शुरू करने के पहले भगवान के दर्शन कर रेलवे स्‍टेशन के उपर बने डारमेट्री में जा पहुंचा। रातभर इंतजार करता रहा कि कब सुबह होगी और मै नौकरी की शुरुआत करूंगा। पंजाब में काम करने की उत्‍सुकता हिलोरे मार रही थी। सुबह हुई और मै अखबार के स्‍टाल पर पहुंच गया। दैनिक जागरण खरीद कर लाया और पूरा अखबार बारीकी से चाट डाला। दोपहर के 12 बजते ही तैयार होकर फोकल प्‍वाइंट के लिए रिक्‍शा थाम लिया। आधे घंटे में रिक्‍शा दैनिक जागरण के गेट पर पहुंचा। वहां पहुंचने पर पूरा ढांचा समझा। कई चीजें हमें नई लग रही थी। उस वक्‍त अधिकारी कोई नहीं थे। डेस्‍क पर हिमाचल प्रदेश का अखबार तैयार करने वाली टीम जुटी थी। वहां जयंत शर्मा से मुलाकात हुई। वह हिमाचल के प्रभारी थे और बडे हंसमुख इंसान हैं। अपना परिचय दिया और उनके काम को देखने लगा। चूंकि मुझे डेस्‍क का अनुभव नहीं था, इसलिए हम डेस्‍क की बारीकियां समझने लगे। दूसरे दिन हम अपने पारिवारिक मित्र जसवीर सिंह बडैच के घर पहुंचे। वहां उनके छोटे भाई और पंजाब के सबसे बडे हास्‍य कलाकार गुरप्रीत सिंह घुग्‍गी से मुलाकात हुई। उनका पूरा परिवार पंजाबी बोल रहा था। एकाध लोग ऐसे थे जो हमारे साथ हिंदी बोलने का प्रयास कर रहे थे। उनकी भाषा हमारे पल्‍ले नहीं पड रही थी और हमारी हिंदी उनके। बावजूद इसके खाने के टेबल पर जब हम बैठे तो घुग्‍गी से पूछा कि यहां लोग भैया क्‍यों बोलते हैं। वह हंस पडे, बाकी लोग भी हंसे लेकिन कोई उत्‍तर नहीं दिया। तब तक काफी रात हो चुकी थी। घुग्‍गी ने कहा रात यहीं रुक जाईये लेकिन हमने कहां नहीं हम स्‍टेशन पर बने सरकारी गेस्‍ट हाउस जाएंगे। खैर, घुग्‍गी की मम्‍मी और पापा हमें स्‍टेशन छोडने आए। मुझसे रहा नहीं गया और हमने फीर पूछा कि आखिर भैया क्‍यों बोलते हैं। उन्‍होंने एक बार लम्‍बी सांस खींची और बोला कि उत्‍तर प्रदेश एवं बिहार से आने वाले लोगों को यहां भैया बोला जाता है, चाहे वह सब्‍जी वाला हो या आईएएस। मुझे सच्‍चाई समझने मे देर नहीं लगी और मेरा दिमाग सीधे जालंधर से मुंबई पहुंच गया। क्‍योंकि मुबंई में भी बसे यूपी के लोगों को वहां भैया कहा जाता है। मुबंई की सेम स्थि‍त पंजाब की है जहां हिंदी बोलते ही लोग भैया कहने लगते है। वहां ज्‍यादातर लोग पंजाबी बोलते है। अगर ज्‍यादा पढे लिखे है तो अंग्रेजी, लेकिन हिंदी में बोलना अपमान समझते थे। मुझे लगा तो बुरा लेकिन मै कर भी कुछ नहीं सकता था, क्‍योंकि पंजाब में पंजाबी भाषा ही बोली जाती है। हां भारत सरकार के दफ़तरों में कुछ किया जा सकता था, लिहाजा मैने मन में ठान लिया कि हिंदी के लिए कुछ करना जरूरी होगा। तीन साल किसी तरह से जालंधर बिताने के बाद अम्रितसर संस्‍‍करण की शुरुआत हुई, जहां हमें गुरुनगरी रिपोटिंग में भेज दिया गया। इस बीच मै पंजाबी पूरी तरह से समझने लगा था और टूटी फूटी पंजाबी भाषा बोलने भी लगा। अम्रितसर जालंधर से ज्‍यादा पंजाबी बोली जाती है। लिहाजा मै अपने लोगों में पंजाबी बोलने की कोशिश करता था, इसलिए की हमें भी यह भाषा आ जाए। बाकी हिंदी के लिए संघर्ष करता रहा। मुझे रेलवे, कारोबार की बीट मिली। रेलवे चूंकि भारत सरकार का महकमा है, इसलिए वहां हिंदी अनिवार्य है। लेकिन कोई भी कर्मचारी हिंदी में काम नहीं करते थे। मैने पहले पूरा ढांचा समझा और एक एक विभागों के खिलाफ छेड दिया अभियान। भारतीय जीवन बीमा निगम, राष्‍ट्रीय बैंक, इनकम टैक्‍स सहित सभी विभागों के खिलाफ हिंदी में काम न करने के लिए जबरदस्‍त काम किया। इस बीच भारत सरकार की हिंदी राजभाषा संसदीय टीम वहां पहुंची। मैने उनके समक्ष यह मुददा उठाया कि यहां लोग न तो हिंदी में काम करते हैं और न ही हिंदी में बोलते हैं। यहां तक कि रेलवे स्‍टेशन के पूछताछ काउंटर पर बैठे कर्मचारी भी पंजाबी में बात करते हैं। सांसदों ने इसपर रेलवे को फटकार भी लगाई। एक दिन तो अजीब वाक्‍या हो गया। एक एयरहोस्‍टेज इंस्‍टीट़यूट में अभिनेत्री नेहा धूपिया आई थी। कार्यक्रम कवर करने मैं पहुंचा। कमरा पत्रकारों से खचाखच भरा था। बैठने के लिए कुर्सी नहीं मिली, लेकिन सबसे पीछे खडे होने की जगह जरूर मिल गई। मै कुछ देर खामोश रहा, लेकिन जब नेहा धूपिया की आवाज कानों तक नहीं पहुंची तब मै बोला कि जरा तेजी से बोलिए। इसके बाद नेहा माइक से बोलने लगी। वह अंग्रेजी में बोल रही थीं। लिहाजा मैने उन्‍हें हिंदी में बोलने को कहा। इतने पर आयोजक बीच में बोल पडे। मैने उनका जबाव देते हुए नेहा धूपिया से कहा कि आप तो अच्‍छी हिंदी बोल लेती हैं तो यहां अंग्रेजी क्‍यों बोल रही हैं। वैसे भी आप हिंदी से कमाते हैं, लेकिन बोलती हैं अंग्रेजी। इतना कहते ही सब खामोश हो गए और नेहा धूपिया हिंदी में बोलना शुरू हो गई। साथी कुछ पत्रकारों ने इसे ठीक कहा। बस इसके बाद हर जगह प्रेस कांफ्रेंस हो या सेमिनार हिंदी में बोलने पर दबाव बनाया जाता रहा। लोग बोलने भी लगे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि जैसे लोग हिंदी में बोलना अपना अपना समझ रहे थे। खैर कुछ भी हो हमारा कारवां आगे बढता गया। इस बीच एक निजी इंश्‍योरेंस कंपनी की कांफ्रेंस में दो दिन मुझे शिमला जाने का मौका मिला। ग्रामीण इलाकों में कैसे जीवन बीमा लोगों तक पहुंचाया जाए और प्रोडक्‍ट बेचा जाए इसी पर चर्चा हो रही थी। कांफ्रेंस में लगभग सभी वक्‍ता अंग्रेजी में भाषण दे रहे थे। एक दिन मै खामोशी से सुनता रहा। दूसरे दिन कांफ्रेंस के बीच में ही मै बोल पडा। कंपनी के अधिकारियों से छोटा सा सवाल किया कि आखिर आप जीवन बीमा का प्रोडक्‍ट पंजाब, हिमाचल, जम्‍मू कश्‍मीर, हरियाणा एवं उत्‍तर प्रदेश के गांवों में बेचने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन वहां तो लोगों को अंग्रेजी आती नहीं। अगर आप इसे हिंदी में बोलते तो क्‍या ठीक न होता। एकाएक तो किसी को समझ में ही नहीं आया कि आखिर मै बोल क्‍या रहा हूं। थोडी ही देर में कंपनी के उपाध्‍यक्ष (वाइस प्रेसीडेंट) जो बिहार से ताल्‍लुक रखते हैं, खडे होकर हिंदी में बोलना शुरू कर दिया। उन्‍होंने हमारे सवाल का सम्‍मान किया और बाकी सत्र हिंदी में ही बोला। सेमिनार खत्‍म होने के बाद सभी ने व्‍यक्तिगत रूप से मिलकर इसका समर्थन किया।
वैसे यह उनकी गलती नहीं है। क्‍योंकि आजकल के लोग हिंदी में बोलना ही अपना अपमान समझते है। यही कारण है कि वह आज भी अंग्रेजों के गुलाम हैं। अंग्रेज तो चले गए, लेकिन वह अपनी भाषा यहां छोड गए। हिंदी का परचम अम्रितसर में लहराने के बाद 9 दिसम्‍बर 2008 को मै देश की राजधानी दिल्‍ली पहुंच गया। यहां भी मेरा सफर जारी रहा। दिल्‍ली में वैसे तो सभी भाषाओं का संगम है, लेकिन ज्‍यादातर वीआईपी एवं सरकारी अधिकारी अंग्रेजी में बोलते हैं। ऐसा नहीं कि यहां लोगों को हिंदी नहीं आती। सभी को आती है और घरों में बोलते भी हैं, लेकिन कार्यालया में बोलते वक्‍त अपमान समझते हैं। यहां तक कि वह कार्यालय में अंग्रेजी अखबार सजा कर रखते हैं। हिंदी अखबार भी लेते हैं, लेकिन उसे चोरी से पढते हैं। या तो बाथरूम में या फीर कार्यालय जाते समय गाडी में पढते हैं। दिल्‍ली में काबिज 80 फीसदी अधिकारियों के साथ यही आलम है। वह चोरी से हिंदी अखबार पढते हैं।
हिंदी क्षेत्र से जुडे लोग खुद हिंदी को पीछे ढकेल रहे हैं। लेकिन दैनिक जागरण ने काफी हद तक हिंदी को अपनाया है। यहां तक कि अंग्रेजी के शब्‍दों के इस्‍तेमाल तक पर पाबंदी लगा दी गई हे। यह एक अच्‍छा कदम है। हिंदी को बचाने के लिए जारी मेरे संघर्ष को उस दिन बल मिला जब राजधानी की एक निजी संस्‍था ने मुझे हिंदी पत्रकारिता का सम्‍मान दिया। दिल्‍ली के 'परिवर्तन जन कल्‍याण समिति' नामक संस्‍था ने राजधानी के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम आडिटोरियम में 'हिंदी महाकुंभ व साहित्‍य सृजन सम्‍मान सम्‍मेलन -2009' का आयोजन किया। इस मौके पर मुझे हिंदी पत्रकारिता सम्‍मान से नवाजा। 10 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के बाद मिला यह सम्‍मान मेरे लिए बहुत महत्‍वपूर्ण रखता है। सम्‍मान देने वाली हस्तियों भारत में मॉरीशस के उच्‍चायुक्‍त मुखेश्‍वर चूनी, पूर्व सांसद डा. रत्‍नाकर पाण्‍डेय, भारत के पूर्व मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त डा. जीवीजी क्रिष्‍णमूर्ति, कुरुकुल कांगडी के पूर्व कुलपति डा. धर्मपाल ने मुझे और मेरे संघर्ष को सलाम किया। साथ ही कहा कि हिंदी को जन जन की भाषा बनाने के लिए संघर्ष को जारी रखना होगा। मैने सिर्फ इतना कहा कि देश में लाखों लोग ऐसे हैं जो … हिंदी से कमाते हैं, लेकिन बोलते हैं अंग्रेजी।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

दिल्‍ली.....दारू.....और डीएल

सावधान पीने वालों....
देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर अगर आप शराब पीकर अब भी गाड़ी चला रहे हैं या चलाने की कोशिश में हैं तो सावधान हो जाएं। क्योंकि, अगला निशाना आप हो सकते हैं। दिल्ली परिवहन विभाग और यातायात पुलिस अब आपको किसी भी सूरत में छोड़ने के मूड में नहीं है। क्योंकि, पिछले सप्‍ताह एक दिन के आपरेशन ड्रंक एंड ड्राइव में पकड़े गए 301 पियक्कड़ों में से 150 ड्राइवरों पर आज गाज गिर गई। परिवहन विभाग ने डेढ़ सौ अंगूर की बेटी के आशिकों का ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) कैंसिल कर दिया। बाकी बचे ड्राइविंग लाइसेंस की जांच पड़ताल की जा रही है। बहुत जल्द उन्हें भी कैंसिल कर दिया जाएगा। इसके साथ ही विभाग ने पियक्कड़ों के खिलाफ जो योजना बनाई थी, उसे अमलीजामा पहना दिया। दिल्ली परिवहन विभाग देश का पहला ऐसा महकमा बन गया जिसने लोगों की शेफ्टी को ध्यान में रखते हुए इतना बड़ा कदम उठाया हो। भले ही यह कदम उसे अदालत के आदेश या सुझाव पर उठाने पड़ रहे हों, लेकिन है स्वागत योग्य। क्योंकि, राजधानी में आए दिन हो रही सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है। पियक्कड़ों की बदौलत ही सड़क दुर्घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। इनके खिलाफ कानूनन पहले भी कार्रवाई होती थी, लेकिन सिर्फ चालान या फिर जुर्माना। वह भी मात्र 2 हजार रुपए। रईसजादों के लिए यह छोटी बात थी, जिसकी वह परवाह नहीं करते। लेकिन अब वह नहीं बच पाएंगे। दिल्ली यातायात पुलिस और परिवहन विभाग प्रत्येक शुक्रवार और शनिवार की रात प्रमुख चौराहों पर एल्को मीटर लेकर उनका स्वागत करते मिलेगा। परिवहन विभाग की माने तो शराब पीएं जरूर लेकिन घर में बैठकर। अगर वह पीकर सड़क पर निकले तो दोबारा गाड़ी चलाने (ड्राइवरी) के लायक नहीं बचेंगे। मोटर वाहन अधिनियम 1988 के सेक्शन 19 एवं केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1989 के सेक्शन 21 के तहत ड्राइविंग लाइसेंस जब्त कर उसे कैंसिल कर दिया जाएगा। इस संबंध में परिवहन आयुक्त आरके वर्मा की माने तो पहले चरण में 150 वाहन चालकों का डीएल कैंसिल कर दिया है। बाकी 151 की पड़ताल हो रही है, रिपोर्ट मिलते ही उसे भी रद्द कर दिया जाएगा। उनकी माने तो दर्जनों पकड़े भी जाते हैं और उनका चालान भी होता है, जुर्माना भी भरते हैं और शर्मिदा भी होते हैं, लेकिन मानता कौन है। क्योंकि, यह दिल्ली है। लेकिन अब चालान और जुर्माना लेंगे ही नहीं। सीधे डीएल जब्त कर लेंगे। डीएल नहीं तो गाड़ी होगी जब्त, दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर (ट्रैफिक) एसएन श्रीवास्तव की माने तो राजधानी में बगैर ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाई तो चालान नहीं होगा बल्कि गाड़ी ही बाउण्ड हो जाएगी। शराब पीकर पकड़े गए जिन लोगों का डीएल जब्त या कैंसिल हो रहा है, उनपर खास नजर रखी जाएगी। उनके वाहनों का खाका खींच लिया गया है, अगर वह कहीं भी नजर आते हैं तो गाड़ी हमेशा के लिए जब्त हो जाएगी।

परदेशियों व दूसरे राज्यों के पियक्‍कडो का भी डीएल होगा कैंसिल
दिल्ली परिवहन विभाग राजधानी वासियों के बाद अब अन्य राज्यों के लोगों पर भी शिकंजा कसने की तैयारी में है। उसकी नजर में कानून सभी के लिए एक है। अगर वह दिल्ली की सड़कों पर शराब पीकर गाड़ी चलाता है तो बचेगा नहीं। वाहन चलाने का अधिकार उससे हमेशा के लिए छिन जाएगा। फिलहाल दिल्ली में तो वह गाड़ी नहीं ही चला पाएगा। दिल्ली परिवहन विभाग ने राजधानी में रहने वाले देश के अन्य प्रदेशों के लाखों लोगों को सलाह और चेतावनी दी है कि वह शराब पीकर गाड़ी न चलाएं। अगर वह पीकर सड़क पर निकले तो दोबारा गाड़ी चलाने (ड्राइवरी) के लायक नहीं बचेंगे। इसके लिए दूसरे प्रदेशों के नंबर वाले वाहनों पर भी विभाग पैनी नजर रखेगा। पीकर गाड़ी चलाने वाले ड्राइवरों पर जुर्माना 2000 रुपये है। यही कारण है कि एक-दो बार पकड़े जाने के बाद भी लोग नहीं मानते और फिर गलती कर बैठते हैं। इसलिए इस बार जुर्माना की रकम और चालान नहीं लिया जाएगा। मोटर वाहन अधिनियम 1988 के सेक्शन-19 एवं केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1989 के सेक्शन-21 के तहत दूसरे राज्यों के वाहन चालकों का ड्राइविंग लाइसेंस जब्त कर उसे कैंसिल किया जाएगा। इस कानून के तहत डीएल कैंसिल करने का अधिकार उसी अथारिटी को है, जिसने लाइसेंस जारी किया होगा। जैसे दिल्ली में बने ड्राइविंग लाइसेंस को पकड़े जाने पर उसे कैंसिल करने का अधिकार दिल्ली परिवहन प्राधिकरण को होगा। इसी तरह जिस राज्य से ड्राइविंग लाइसेंस बना होगा, दिल्ली परिवहन विभाग उस संबंधित अथारिटी को जब्त किए गए डीएल को स्थगित करने के लिए रिकमेंट करेगा। किसी भी सूरत में शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों को छोड़ेंगे नहीं। दिल्ली यातायात पुलिस के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर ड्रंक एंड ड्राइव चलाएंगे। मौके पर एल्को मीटर की रिपोर्ट आते ही डीएल जब्त कर लिया जाएगा, क्योंकि राजधानी की सड़कों पर शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों की वजह से आए दिन दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

बुधवार, 17 जून 2009

यह कैसी राजधानी, जहां पीने को नहीं है पानी

अरे भाई यह कैसी है देश की राजधानी, जहां पीने को नहीं मिलता है पानी। क्‍या राजा क्‍या प्रजा, हर कोई है प्‍‍यासा ही प्‍‍यासा। क्‍या गरीब क्‍या अमीर, हर कोई है पानी के बिना। जब देश की राजधानी प्‍‍यासी है तो बुदेंलखंड और राजस्‍‍थान की बात करना ही बेमानी है। राजधानी में ऐसा नहीं कि पानी की कमी है, यहां पानी बहुत है, लेकिन दबंग और जल माफिया जल बोर्ड के समानांतर अवैध जल का कारोबार कर रहे हैं। इन लोगों ने तो कई इलाकों में बाकायदा जल बोर्ड की तरह पाइप लाइन बिछाकर कनेक्शन बांट रखे हैं। कई जगह तो जल बोर्ड के ट्यूबवेल तक का इस्तेमाल वह अवैध रूप से कर रहे हैं। 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के इस सालाना कारोबार में दिल्ली के राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़े दबंग नेता भी शामिल हैं। यही कारण है कि वह मनमर्जी से इस काले कारोबार को अंजाम दे रहे हैं। कहीं टैंकर से पानी की आपूर्ति की जाती है तो कहीं ट्यूबवेल लगाकर बाकायदा कनेक्शन दिए गए हैं। वह भी 2 से 4 हजार रुपये सिक्योरिटी लेकर। दिल्ली के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र, साउथ दिल्ली के इलाके, पूर्वी पश्चिम, मेहरौली, संगम विहार, महिपालपुर, रंगपुरी सहित दर्जनों इलाकों में पानी का अवैध कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। इनमें दूरदराज के इलाके व गांव भी शामिल हैं, जहां जल बोर्ड का पानी नहीं पहुंच पाता है। पानी का यह अवैध नेटवर्क दो तरीके से फैलाया गया है। दिल्ली से सटे हरियाणा, राजस्थान और यूपी में ट्यूबवेल की बोरिंग कर उसका पानी टैंकरों से यहां लाया जाता है। दूसरा, जहां जल बोर्ड का ट्यूबवेल खराब है या फिर किन्हीं कारणों से नहीं चल रहा है, उसकी पाइप लाइन का भी इस्तेमाल अवैध कारोबार में जल बोर्ड के समानांतर जल कारोबार किया जा रहा है। सरकारी ट्यूबवेल के आसपास निजी ट्यूबवेल की बोरिंग कर सरकारी पाइप लाइन से पानी की आपूर्ति की जाती है। दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली में ऐसे कई स्थानों पर पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। जल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो निजी ट्यूबवेल वालों ने मोहल्लों में पाइप लाइन बिछाकर 2000 से 4000 रुपये सिक्योरिटी लेकर कनेक्शन बांट रखे हैं। जहां भी पानी की कमी है, वहां आपूर्ति की जा रही है। अधिकारी की मानें तो हकीकत में जल बोर्ड पर विधायकों का ही कब्जा है। जहां वह चाहते हैं, वहीं जल बोर्ड का पानी जाता है। समानांतर चल रहे पानी के इस कारोबार पर अंकुश लग जाए तो जल बोर्ड का राजस्व दोगुना हो सकता है। वर्तमान में दिल्ली जल बोर्ड की वार्षिक आय (रेवेन्यू) 500 करोड़ के लगभग है, जबकि अवैध जल कारोबार 300 करोड़ का हो रहा है। इस अवैध कारोबार से जल बोर्ड भी परेशान है। वह कार्रवाई तो करना चाहता है लेकिन दबंग उनके अधिकारियों को ही बंधक बना लेते हैं। एक महीने के भीतर चार अधिकारी पिट भी चुके हैं। इस संबंध में दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी की माने तो कुछ इलाके हैं, जहां यह समस्या आई है। विजिलेंस टीम इलाकों की छानबीन कर रही है, जहां पानी का अवैध कारोबार हो रहा है। दो हजार में बिक रहा है टैंकर : राजधानी में पानी की किल्लत इस प्रकार बढ़ गई है कि पानी ब्लैक में बिक रहा है। बड़े साइज का टैंकर जो 1000 में होता था, अब दो हजार रुपये में मिल रहा है। वह भी बिना शोधित किए। दिल्ली जल बोर्ड 400 से लेकर 1000 रुपये तक प्रति टैंकर दूरी और साइज के हिसाब से लेता है, जबकि प्राइवेट कंपनियों के टैंकर जरूरत के हिसाब से बढ़े रेट पर मिल रहे हैं। कई स्थानों पर दिल्ली जल बोर्ड का टैंकर भी दबंग लोग ब्लैक कर दे रहे हैं। ऐसा जल बोर्ड भी मान रहा है।

बुधवार, 6 मई 2009

पार्टनर से सैक्सुअली रिलेशन बनाने का नया ट्रेंड

इश्क में हस्तीं मिटाने पर तुले कुंवारे
ज्रमाने का देखो चलन कैसे-कैसे। अरे भईया अब तो कलयुग पूरी तरह से आ गया है। इश्क में अंधे कुंवारे अपनी पार्टनर के साथ सैक्सुअल संबंध बनाने के लिए हस्तीं मिटाने पर तुले हैं। बड़े महानगरों एवं हाईटेक राजधानियों में इसका ट्रेंड सा चल पड़ा है। ऐसे युवाओं की संख्‍या बढ़ रही है जो अपनी पहचानं (मरदानगी) मिटाने के लिए नसबंदी करवा रहे हैं। कुछ पार्टनर के दबाव में तो कुछ अन्य कारणों से। नसबंदी करवाने के लिए ऐसे कुंवारों युवक चोरी छिपे अस्पतालों में पहुंच रहे हैं जो ड्रगिस्ट हैं और पैसे की जरूरत है। चूंकि, भारत सरकार पुरुष नसबंदी पर प्रोत्साहन राशि देती है, इसलिए ज्यादातर कुंवारे पैसे की लालच में शादीशुदा बताकर नसबंदी करवा रहे हैं। कुंवारें युवा इसलिए भी बेधड़क नसबंदी करवा लेते हैं कि बाद में पुन खोलवा लेंगे। ऐसी सुविधा भी है और होता भी है। हालांकि, भारत में कुंवारों की नसबंदी पर पाबंदी है। बावजूद इसके बदले ट्रेंड में सब कुछ जायज है। सरकारी तौर पर उन्हीं पुरुषों का नसबंदी होता है, जो दो बच्चे के बाप हैं और स्वेच्छा से नसबंदी करवाना चाहते हैं। राजधानी दिल्ली की बात करें तो नसबंदी सेंटरों में रोजाना कई कुंवारे नसबंदी करवाने पहुंच जाते हैं। दिल्ली के लोकनायक अस्पताल की बात करें तो कुछ दिनों पहले 4 दिन में 6 कुंवारे नसबंदी करवाने पहुंचे। कौंसलिंग के दौरान कुंवारा होने का खुलासा होने पर केस कैंसिल कर दिया। 21 साल के राहुल देव अच्छे परिवार और अच्छी कंपनी से जुड़े हैं। लेकिन आईटी सेक्टर की उनकी पार्टनर (प्रेमिका) के कहने पर लोक नायक अस्पताल पहुंच गए नसबंदी करवाने। राहुल ने बताया कि वह इसलिए नसबंदी करवा रहा है, क्योंकि उनकी प्रे‍मिका सैक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए तैयार नहीं हो रही है। उसका तर्क था कि नसबंदी करवा लेने से उसकी प्रेमिका को सैक्‍सुअल रिलेशन बनाने में कोई खतरा नहीं होगा। बाद में नसबंदी को दोबारा खोलवा लेगा। राहुल की तरह ही चंडीगढ़ के अर्शदीप सिंह, चेन्नई के आर शंकरन एवं लुधियाना के गुरप्रीत सिंह भी पार्टनर की खुशी और अपनी हवस पूरी करने के लिए अपनी हस्तीं मिटाने डाक्टरों की शरण में पहुंचे थे। दिल्ली के ही संजय गांधी अस्पताल में पिछले महीने एक 20 साल के कुंवारे प्रदीप कुमार ने नसबंदी करवा ली थी। इस महीने उसकी शादी होने वाली थी, घर वालों को पता चला तो उसे अस्पताल लेकर भागे। हालांकि डाक्टरों ने प्रदीप की मां के हस्तक्षेप पर नसबंदी खोल दी। बगैर शादीशुदा के नसबंदी कराने वाले कुंवारों का जैसे ट्रेंड चल पड़ा हो। कानून की नजरों में गलत जरूर है, लेकिन कुंवारों के लिए इश्क में सबकुछ जायज है। सैक्सुअली रिलेशन के बदले ट्रेंड के अलावा ड्रगिस्ट किस्म के कुंवारे महज इसलिए नसबंदी करवा रहे हैं, कि उन्हें सरकार द्वारा दिए जाने वाला प्रोत्साहन राशि (1300 रुपये) मिलेगा। लोक नायक अस्पताल में ऐसे केस रोजाना 2-3 पहुंच जाते हैं। यह ट्रेंड देश के सभी बड़े महानगरों में फैल चुका है, जहां नशे के सौदागरों ने अपना जाल फैला रहा है। दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय हास्पिटल में कुछ दिन पहले एक ऐसे ड्रगिस्ट (सुरेन्द्र पाल) ने नसबंदी करवा ली, जिसकी मात्र कुछ दिन पहले शादी हुई थी। पत्नी को जब पता चला तो बवाल खड़ा हो गया। वह तुरंत घरवालों को लेकर अस्पताल पर धावा बोल दिया। बाद में इसका खुलासा हुआ कि सुरेन्द्र पाल अपनी मर्जी से झूठ बोल कर पैसे की लालच में नसबंदी करवाई है। उसे ड्रग्स के लिए पैसे ही जरूरत थी। सुरेन्द्र पाल जैसे अनगिनत कुंवारे ड्रगिस्ट पैसे की लालच में नसबंदी करवा रहे हैं। एक अस्पताल मना कर देगा तो दूसरे अस्पताल पहुंच जाएगा। पुरुष नसबंदी की व्यवस्था देश के सभी बड़े अस्पतालों में है। साथ ही परिवार कल्याण मंत्रालय इसके लिए कैंप भी लगाता है। अस्पतालों में नसबंदी कराने आने वालों का चूंकि घरेलू रिकार्ड बहुत ज्यादा नहीं मांगा जाता, इसलिए कुंवारे इसका फायदा उठा लेते हैं। वैसे भी अगर सरकारी अस्पताल नहीं करेगा तो निजी अस्पतालों में वह नसबंदी करवा लेते हैं। ऐसा जानकारों का भी मानना है। लेकिन, कानून की नजरों में कुंवारों की नसबंदी होना गलत है। राजधानी में पुरुष नसबंदी के विशेषज्ञ डाक्‍टर एचसी दास कहते है कि देश में कुंवारों की नसबंदी के लिए कोई छूट या नियम नहीं है। यह व्यवस्था तो सिर्फ शादीशुदा एवं 2 बच्चों के पिता के लिए लागू है। लेकिन, आजकल कुंवारे लोगों द्वारा नसबंदी करवाने का जैसे ट्रेंड चल गया हो। अक्सर अस्पतालों में पहुंच जाते हैं। कोई अगर झूठ बोलकर और नाम बदल कर नसबंदी करवा ले तो पता भी नहीं चल पाता। वह कहते हैं कि बाद में नसबंदी खुल जाती है, इसलिए लोग डरते नहीं।पुरुष नसबंदी के माहिर डाक्‍टर चंदन भी मानते हैं कि कुंवारे लोग नसबंदी करवाने आते हैं। हालांकि काउंसलिंग के बाद उन्हें पता चलने पर भगा दिया जाता है। बावजूद इसके वह अस्पताल में नसबंदी करवाने पहुंच जाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रो एनके चड्ढा कहते हैं कि नसबंदी करवाने वाले कुंवारे क्वसेकोपैथं किस्म के होते हैं। इनमें किसी भी महिला को देखते ही सैक्सुअल संबंध बनाने की इच्छा जागृति होती है। एक पार्टनर से ऐसे लोगों का मन नहीं भरता। कानून के जानकार एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी की अलग राय है। वह कहते हैं कि कोई भी इंसान जो बालिग है, वह स्वतंत्र है। कुछ भी कर सकता है। वह नसबंदी करा रहा है, कोई अपराध नहीं। इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। साधो यह कैसा चलन है। ऐसा तो कभी होता नहीं था, तो अब ऐसा चलन कहां से आ गया। बिना घर बसाये, सात फेरे लिए ही अपनी मर्दानगी को सरेंडर कर रहे हैं युवा। कहीं यह हाईटेक जमाने का कसूर तो नहीं। कुछ तो है जो भागदौड भरी जिंदगी में युवाओं को घर से बसाने से दूर ढकेल रही है। कहीं किशोरियां आपस में ही शादी रचा ले रही हैं तो कहीं लडके लडके आपस में समलैंगिक विवाह रचा रहे हैं। रिषियों और मुनियों के इस देश में पाश्‍चात्‍य संस्किती पूरी तरह से हावी होती जा रही है। इसे रोकना होगा, अन्‍यथा अनर्थ हो जाएगा।

मंगलवार, 5 मई 2009

हर हर महादेव, बाबा मनकामेश्‍वर की जय

इलाहाबाद- यमुना तीरे स्थित श्री मनकामेश्‍वर महादेव के साक्षात दर्शन "

दुनिया के सबसे बडे महासंग्राम पर लगा अरबों का सट़टा

-देश में फिर बनेगी कांग्रेस की सरकार - सट्टेबाज
-दिल्ली में 6 सीटों पर कांग्रेस की होगी जीत-
कांग्रेस की 145 से ज्यादा सीट मिली को एक का दो-
बीजेपी 132 सीट से उपर जाने पर लगा एक का दो
दे
श में हो रहे पंद्रहवी लोकसभा के चुनाव में जहां राजनीतिक पारटियां विजय श्री के लिए पूरी ताकत झोंक दी हैं, वहीं सट्टेबाजों ने उनके ऊपर करोड़ों रुपये का दांव ख्‍ोल दिया है। चौथा और पांचवे चरण का चुनाव सट्टेबाजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि, इसमें राजधानी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्‍मू-कश्मीर, यूपी सहित सहित महत्वपूर्ण राज्य बचे हैं। इनमें दर्जनों सीटों पर विभिन्‍न पारटियों के दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए सट्टेबाजों ने करोड़ों रुपये लगा दिए हैं। सट्टेबाजी का रिमोट राजधानी दिल्ली में बैठकर कंट्रोल हो रहा है। दिल्ली के प्रमुख कारोबारी केंद्र सदर बाजार और चांदनी चौक इसका मुख्‍य केंद्र है। दिल्ली की सातों सीटों सहित केंद्र में किसकी सरकार सत्ता में आएगी, इसपर चौका, छक्का लगने लगा है। सट्टेबाजों की नजर में कांग्रेस पार्टी दोबारा केंद्र में सरकार बना सकती है। कांग्रेस अगर 145 सीट से ऊपर जाती है तो एक का दो मिलेगा। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी देशभर में 132 सीट से ज्यादा सीट पाती है तो एक का दो मिलेगा। पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 145 सीटें थीं, जबकि बीजेपी के पास 138सीट। सट्टेबाजी सिर्फ इन्हीं दोनों दलों (कांग्रेस और भाजपा) पर बोली जा रही है। लेकिन, दोनों में बीस कांग्रेस पार्टी लग रही है। यही कारण है कि ज्यादातर खिलाडी कांग्रेस पार्टी के ऊपर धुंआधार पैसे लगा रहे हैं। इसी तरह राजधानी दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर जबरदस्त सट्टेबाजी हो रही है। यहां कांग्रेस पार्टी का पलड़ा भारी है। वह 7 में से 6 सीटों पर विजय श्री हासिल करेगी। इसमें सबसे ज्यादा पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित पर नजर है। सट्टेबाजों ने संदीप दीक्षित पर मात्र 4 पैसे का दांव खेला है, जबकि विरोधी भाजपा के चेतन चौहान पर 20 रुपये लगाए हैं। इसी तरह चांदनी चौक से कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल पर 16 पैसे तो भाजपा के विजेन्दर गुप्ता पर साढे चार रुपये, उत्तर पूर्वी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी जेपी अग्रवाल पर 20 पैसे, जबकि विरोधी भाजपा के प्रत्याशी बीएल शर्मा प्रेम के ऊपर 4 रुपये, उत्तर पश्चिम सीट (आरक्षित सीट) से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा तीरथ पर 28 पैसे तो भाजपा प्रत्याशी मीरा कांवरिया पर 3 रुपये का दांव खेला जा रहा है। दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रमेश कुमार पर 32 पैसे तो भाजपा प्रत्याशी रमेश विधूड़ी पर ढाई रुपये, पश्चिमी दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे दिल्ली के लालू का पलड़ा सट्टेबाजों ने पलट दिया है। इस सीट पर उनके ऊपर साढे 3 रुपये लगा है, जबकि भाजपा प्रत्याशी जगदीश मुखी पर मात्र 25 पैसे का दांव खेला गया है। यहां कांग्रेस की सीट सट्टेबाजों की नजर में गड़बड़ा सकती है। जबकि, नई दिल्ली सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन का हिसाब ठीक है। इन पर 22/23 पैसे की बोली लगी है तो भाजपा प्रत्याशी विजय गोयल के ऊपर 3- 20 रुपये का दांव लगा है। सट्टेबाजी के केंद्र बने राजधानी के सदर बाजार और चांदनी चौक से पूरा नेटवर्क टेलीफोन पर संचालित हो रहा है। देश सहित विदेशों में बैठे खिलाडी अब तक कई सौ करोड़ रुपये दांव पर लगा चुके हैं। जैसे-जैसे चुनाव जोर पकड़ रहा है, वैसे वैसे सट्टेबाजी जोर पकड़ती जा रही है। सदर बाजार के प्रमुख सट्टेबाज किशोर जैन की माने तो रविवार को बसपा सुप्रीमों मायावती, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की दिल्ली में हुई तीन बड़ी रैलियों के बाद सट्टेबाजी की रेटिंग ज्‍यादा बढ़ गई है। इसमें व्यापारी, कंपनियां और कई बड़े औद्योगिक घराने करोड़ों रुपये दांव पर लगा रहे हैं। सट़टेबाज रमेश कुमार की नजर में लोकसभा चुनाव पर 500 करोड रुपये का दांव लग चु्का है। देश के बडे व्‍यापारी और औदयोगिक घराने यही चाहते हैं कि दोबारा देश में कांग्रेस की सरकार बने।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

कल रात मेरे पति से भूल हो गई !

सुनिये जी ! कल रात फिर आपसे भूल हो गई है । इतनी जल्दबाजी में क्यूं रहते हैं ?
वैधानिक चेतावनी: 18 साल से कम उम्र के व्यस्क इस व्यंग्य लेख को माँ-बाप से छिप कर पढें (क्यूं कि पढे बिना तो मानोगे नहीं) ।
इधर कुछ महीनों से सवेरे-सवेरे अनुलोम-विलोम, कपालभाति आदि निबटा कर जब चाय के साथ दुनिया जहान की खबरें पढने बैठता हँू तो एक पता नहीं कौन सी भाभी जी हैं, आजकल हर दूसरे-तीसरे फ्रंट पेज पर अपना मुखड़ा सहित दुखड़ा लेकर चली आती हैं । क्या कहूँ, ”कल रात मेरे पति से फिर भूल हो गई” । भाई साहब इधर शेयर मार्केट में आग लगी है, गठबन्धन सरकार की गाँठे खुल रही है, ट्रेनें बहक-बहक कर पटरियों को तलाक दे रही है, मेडिकल इक्ज़ाम के पेपर आउट हो रहे हैं, सालियाँ प्रेममयी जीजाओं को ठेंगा दिखा यारों संग चम्पत हो रहीं हैं, मतलब की और भी बहुत से गम हैं अखबार में इसके सिवाय कि इधर इनके पति से सोमवार रात भूल हुई थी इधर शुक्कर की रात साला फिर भूल भलैया में फंस गया ।
घोर विपदा में पड़ी इन भाभी जी के बारे में मैं विचार करने लगा कि इनके पति को कौन सी बीमारी हो सकती है । अल्जाईमर्स का मर्ज हो सकता है क्यूंकि इस बीमारी में मरीज की याद्दाश्त जाती रहती है । या फिर भाईसाहब ने शादी ही प्रोढ़ावस्था के बाद की होगी । उम्र के साथ साथ याद्दाश्त पर भी असर पड़ने लगता है । लेकिन ऐसी क्या बात है कि भाई साहब सप्ताह में दो-तीन बार ऐसी जरूरी बात मिस कर जाते हैं और दूसरे दिन भाभी जी इस हादसे की खबर शहर के हर अखबार के पहले पन्ने पर प्रकाशित करवा देती हैं । मेरे नौ वर्षीय भतीजे से जब नहीं रहा गया तब वह जिज्ञासू पूछ ही बैठा ”ताऊजी ये आंटीजी के अंकल जी हर रात ऐसी क्या चीज भूल जाते हैं कि आंटी जी बार बार अखबार में इनकी शिकायत करती रहती हैं ?” मैं क्या जवाब देता । मैं खुद इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा था ।
अब भाभी जी भी कम भुलक्कड़ नहीं हैं । हर दूसरे तीसरे ये खबर छपवा देती हैं कि कल रात मेरे पति से भूल हो गई, पर अपने घर का पता या मोबाईल नं0 छपवाना भूल जाती हैं । भई कुछ अता पता दो, हम लोग घर पहुंच कर मामले की गंभीरता को समझें और गहराई से इस पहेली की पड़ताल करें की साला ममला कहाँ से शुरू होता है और कहाँ जाकर खत्म होता है । ये रोज रोज एक अबला का दर्द हम लोगों से अखबार में नहीं पढा और सहा जायेगा । बात क्या है । अगर भाई साहब इतने ही बड़े भारी भुलक्कड़ हैं तो दुनिया में भाई साहेब लोगों का अकाल नहीं पड़ा है । आप इन भुलक्कड़ भाई साहब से अपना पल्लु झटक कर किसी दूसरे दिमागदार और याद्दाश्त के धनी भाई साहब से गठबंधन कर सकती हैं । पूज्य भाई साहेब जी अगर कोई बहुत जरूरी जीच हर दूसरी-तीसरी रात भूल ही जाते हैं तो भाभी जी हमें बतायें । हम लोग उनकी इस भूल को दुरस्त करने का भरसक प्रयास करेंगे ।
तो मित्रों, सवेरे सवेरे एक सांवली सलोनी, हष्ट पुष्ट (क्यूंकि भाभी जी ये खबर मय फोटो के छपवाती हैं), मातम मनाती सुदंर स्त्री का विलाप पढते-पढते जब दिल और दिमाग दोनो जवाब दे गये तब जाकर पता चला कि भाई साहब रात में टोपी पहनना भूल जाते हैं और भाभी जी इस भरी जवानी में पैर भारी होने की टेंशन से पीड़ित हो कर सवेरे- सवेरे अपने नादान पति की कारगुजारी अखबार में छपवा देती हैं । अब आप सोच रहे होंगे कि ये अखबार वाले भी न, एक नं0 के शैतान होते हैं । इसी बहाने एक सुंदर महिला रोज-रोज इनके दफ्तर अपने पति की नादानियाँ सुनाने पहुँच जाती है और ये लोग भी अपना सारा काम-धाम छोड़कर, खूब चटकारे लेकर उनके पतिदेव की नादानियाँ सुनने में लग जाते होंगे । नहीं मित्रों, ऐसी कोई बात नहीं है । न तो उन हसीन भाभीजी के पतिदेव रोज-रोज कोई भूल करते हैं और न ही वो अप्सरा अपना दुखड़ा लेकर रोज-रोज अखबार के दफ्तर पहुँची रहती हैं । बात ये है कि एक दवा की कम्पनी है जिसकी एक दवा 72 घंटे के अंदर ऐसी किसी भी हसीन भूल-चूक, लेनी-देनी के कारण हुई टेंशन का निवारण करती है । सारा कसूर साली इस कम्पनी का था और हम बेवजह इन हसीन भाभी जी के पेटपिरावन कष्ट को याद कर कर के पिलपिला रहे थे । एक तो कम्बख्त आजकल ये भी पता नहीं चलता है कि अखबार में कौन सी चीज खबर है और कौन सी चीज विज्ञापन ।
वैसे इस प्रकार की दवा कम्पनियाँ भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय पर उपकार ही कर रही हैं । ये एक हसीन सी जिस्मानी भूल-चूक, लेनी-देनी को माफ और साफ कर देती हैं और इसकी वजह से बाद में बेवजह के गर्भपात से भी छुटकारा मिल जाता है । लेकिन इस दवा के कारण अब प्रेमी प्रेमिकाओं, स्कूली छात्र-छात्राओं, अपने धर्मपति से नाउम्मीद धर्मपत्नियों को या अपनी धर्मपत्नी से नाउम्मीद धर्मपतियों को, शादी का वादा करके एडवांस में सुहागरात मनाने वाले गंधर्व पुरूषों को एक सहूलियत मिल गई है । इस व्यभिचार को बढावा देने के लिए भारत की पुरातन संस्कृति सदैव इन समाज सेवी दवा कम्पनियों की ऋणी रहेंगी ।
तो ये कहानी थी मित्रों, हसीन दुखियारी भाभी जी की । इसके अलावा कुछ विज्ञापन और भी छपते हैं हष्ट-पुष्ट, स्वस्थ नारियों के फोटो सहित, जिसमें उनके जिस्म के उभारों को नारी सौंदर्य का प्रतीक बताया जाता है और इन उभारो के प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व को दर्शाया जाता है और साथ ही बताया जाता है कि इस प्राकृतिक नारी सौंदर्य के बिना आप अधूरी हैं । आपके इस अधूरेपन को पूरा करने का ठेका भी इनकी चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल प्राईज विनर दवाओं ने ले रखा है । इसलिए अगर आप ठीक तरह से अपने प्रेमियों और पतियों को प्रेमरस से परिपूर्ण जिस्मानी सर्विस नहीं दे पा रहीं है तो आपकी इस दुविधा को दूर करने के लिए हमें एक बार सर्विस का मौका दें और एक बार हमारे बॉडी टोनर का प्रयोग कर के देखें ।
मित्रों, अब इन विज्ञापनों को पढ कर 80 प्रतिशत महिलाओं के मन में हीन भावना आ जायेगी कि मेरा शरीर मेरे पार्टनर को संतुष्ट करने लायक नहीं है और दूसरी तरफ मर्दजात के मन में एक ख्वाईश पैदा हो जायेगी कि पार्टनर हो तो ऐसा हो, नहीं तो न हो । अब यह मेडिकल के छात्रों के लिए शोध का विषय है कि इस प्रकार के बॉडी टोनर से क्या वाकई में सभी महिलाओं के उभार पामेला एंडर्सन जैसी ऊंचाईयाँ प्राप्त कर लेंगे । खुदा जाने । मेरी जानकारी में तो भगवान ने आपको जैसा शरीर दिया है उसमें बिना कॉस्मेटिक सर्जरी की मदद के कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता है । लेकिन सवेरे-सवेरे इन हसीन भाभीयों का दुख पढ कर दिल भर आता है और फिर ये लगता है कि काश मैं इनकी कोई मदद कर पाता ।

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

गरीबों की पार्टी के धनकुबेर प्रत्याशी


गरीबों व दलितों की पार्टी कहलाना पसंद करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने राजधानी दिल्ली में धनकुबेरों को अपना प्रत्याशी बनाया है। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे बसपा प्रत्याशी करोड़पति हैं। संपत्ति के मामले में ये दिल्ली के अमीर तबके को भी मात देते दिखते हैं। इन्हीं में दो प्रत्याशी तो ऐसे हैं जो देश के सर्वाधिक धनकुबेरों में शुमार हैं। पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से बीएसपी प्रत्याशी दीपक भारद्वाज 600 करोड़ रुपये से ज्यादा के मालिक हैं। यानि 15वीं लोकसभा के लिए चल रहे महासमर में देश के सबसे अमीर प्रत्याशी। वहीं दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से कंवर सिंह तंवर करीब 153 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हैं। चुनाव आयोग को दिए शपथपत्र के मुताबिक, पश्चिमी दिल्ली से चुनाव लड़ रहे बसपा प्रत्याशी दीपक भारद्वाज की कुल संपत्ति 600 करोड़ रुपये (पत्नी और बच्चे का मिलाकर) से ज्यादा की है। इनकी आवासीय संपत्ति 76.46 करोड़ रुपये एवं बैंक जमा राशि 60 लाख रुपये से ज्यादा की है। वहीं अन्य बैंकिंग संपत्ति 18 करोड़ 82 लाख, 57 हजार, वाहनों की कीमत 12 लाख, 79 हजार, ज्वैलरी 44 लाख 72 हजार, अन्य संपत्ति 32 करोड़ 14 लाख 64 हजार है। इसमें सबसे ज्यादा कृषि योग्य भूमि 468 करोड़ 57 लाख रुपये व गैर कृषि योग्य जमीन 6 करोड़ 40 लाख 59 हजार से ज्यादा की है। दूसरे बसपा प्रत्याशी हैं
गरीबों की पार्टी के ये धनकुबेर प्रत्याशी दक्षिणी दिल्ली के कंवर सिंह तंवर, जिनकी कुल संपत्ति लगभग 153 करोड़ रुपये। इसमें नकदी 11 लाख, दो फार्म हाउस की कीमत 53 करोड़ 35 लाख रुपये, कुल जमीन 87 करोड़ 67 लाख रुपये, बांड/शेयर 1 करोड़ 64 लाख रुपये, देसी एवं विदेशी कार 1 करोड़ 16 लाख रुपये के हैं। तीसरे बसपा प्रत्याशी हैं चांदनी चौक लोकसभा सीट से उम्मीदवार मुहम्मद मुस्तकीम। हलफनामे के अनुसार, इनकी कुल संपत्ति करीब 20 करोड़ रुपये की है। इसमें नकदी 2 लाख 91 हजार रुपये, आवास 8 करोड़ 95 लाख, कृषि योग्य भूमि 3 करोड़ 20 लाख रुपये, वाहन 73 लाख 32 हजार, अन्य वित्त पत्र 21 लाख, अन्य बैंकिंग संपत्ति 6 करोड़ 45 लाख रुपये है। चौथे और पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरे हाजी यूनुस के पास कुल संपत्ति करीब 20 करोड़ रुपये है। इसमें नकदी चार लाख, बैंक जमा राशि 14 लाख 70 हजार, गाड़ी के नाम पर एक बोलेरो, जेवर 3 लाख 60 हजार, अन्य संपत्ति 17 लाख 50 हजार, जमीन लगभग 32 लाख रुपये, आवास 25 लाख रुपये कीमत की है। नई दिल्ली लोकसभा सीट से उतरे बसपा के पांचवें प्रत्याशी त्रिलोक चंद्र शर्मा भी करोड़पति हैं, हालांकि उन्होंने मात्र 2 करोड़ 39 लाख रुपये की संपत्ति का ही शपथपत्र में उल्लेख किया है। कैश के नाम पर पांच लाख रुपये और बैंक में 15 हजार रुपये की नगदी दिखाई है। अन्य बैंकिंग संपत्ति के नाम पर 9 लाख 76 हजार, वाहन 1 करोड़ से ज्यादा की (पत्नी व बच्चे का मिलाकर), जेवर 31 लाख 56 हजार एवं आवासीय संपत्ति 79 लाख रुपये के लगभग है।

इंटरनेट पर सवाल दाग रहे दिल्ली-6 के लोग

ज्रमाने का देखो चलन कैसे-कैसे----- हाईटेक युग में अपनी बात रखने के लिए जहां लोग नेताओं पर चप्पल फेंक रहे हैं, वहीं दिल्ली-6 के मतदाता इंटरनेट पर सीधे नेताजी से सवाल दाग रहे हैं। चुनाव मैदान में कूदे नेताओं द्वारा बनाई गई वेबसाइट एवं ब्लाग पर लोग स्थानीय समस्याओं से लेकर राष्ट्रीय मुद्दे तक उठा रहे हैं। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में जो जैसा है, उससे उसी स्तर के सवाल पूछे जा रहे हैं। सवालों की सबसे ज्यादा बौछार दिल्ली-6 के लोगों ने की है। वह भी केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल से। इसमें कुछ समस्याएं तो इतनी गंभीर और जटिल हैं कि उसे सिब्बल क्या सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर देंगी। दिल्ली-6 के जागरूक मतदाता जो बात रैली या फिर धरना प्रदर्शन में नहीं कह सकते, वह बात अब इंटरनेट के माध्यम से रख रहे हैं। आइये, ले चलते हैं आपको सीधे इंटरनेट पर..। 18 अप्रैल को लिखे सवाल में दिल्ली के सैय्यद जावेद ने बड़ा ही गंभीर प्रश्न उठाया है। वह यह कि दिल्ली चांदनी चौक निर्वाचन क्षेत्र में महिलाओं के लिए कोई योजना नहीं है। संकरी गलियों एवं ऊंची इमारतों में रहने वालीं 80 फीसदी महिलाएं मोटापा, जोड़ों के दर्द सहित अनेक बीमारियों से पीडि़त हैं। क्योंकि, स्वच्छ एवं ताजी हवा, घूमने के लिए पार्क जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। घनी आबादी के बीच बने छोटे-छोटे घरों में रहने वाली महिलाओं के लिए किसी सरकारों ने कभी नहीं सोचा। इलाके में एक पार्क है जरूर, लेकिन वहां पुरुषों का कब्जा है। महिलाओं के लिए वहां जाना खतरों से खाली नहीं है। हां, अगर उसी पार्क में सुरक्षा व्यवस्था ठीक कर दी जाए तो दिल्ली-6 की महिलाओं को बीमारी से बचाया जा सकता है। सवाल के जवाब में सिब्बल ने जल्द इस बारे में अहम कार्रवाई का भरोसा दिया है। साथ ही कहा है कि वह क्षेत्र की महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर हैं। दिल्ली के पुरुषोत्तम अग्रवाल ने मुनि माया राम अस्पताल और वैशाली रोड पर लगने वाले ट्रैफिक जाम से बचने के लिए पेड़ काटकर सड़क चौड़ा करने का सुझाव दिया है। 14 अप्रैल को दागे सवाल में दिल्ली के आशीष गर्ग ने पूछा है कि लारेंस रोड औद्योगिक क्षेत्र का 5 साल से बन रहा सब-वे कब पूरा होगा। चुनाव में नेता भाषण देते हैं और बाद में गायब हो जाते हैं। आखिर यह कब तक..। दिल्ली के नीतीश जैन ने 13 अप्रैल को सवाल पूछा था कि बादली तक मेट्रो कब तक पहुंचेगा। दीपक खत्री पूछते हैं कि चांदनी चौक से भाजपा उम्मीदवार की बदौलत टायर मार्केट, फिल्मिस्तान उजड़ गया, सैकड़ों की रोजी-रोटी चली गई, आप क्या करेंगे। अशोक विहार, फेज-1, बी-ब्लाक में सुरक्षा को लेकर अमित लोहानी ने बड़ा सवाल उठाया है। सुरक्षा न होने के कारण लुटेरों एवं नशेड़ी लोग आए दिन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दिल्ली की रुपाली जैन पूछती हैं कि अब तक सिब्बल जी क्षेत्र में आपने क्या किया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों से भी राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर सवाल दागे जा रहे हैं।

सुनील पाण्‍डेय
नई दिल्‍ली।

बुधवार, 18 मार्च 2009

राजधानी में ठगों के चंगुल में विदेशी मेहमान

नई दिल्ली`अतिçथ देवो भव´, यह सरकार का मूलमंत्र है पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए। अतिçथ देवता के समान हैं, कागजों में उन्हें दर्जा भी देवता का दिया जाता है, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में इसका मतलब कुछ और है। यहां जिस अतिçथ (देवता) का आदर सत्कार होना चाहिए था उन्हें लूटा जा रहा है। वह भी पूरी योजनाबद्ध तरीके से। हैरानी की बात तो यह है कि इस कृत्य में वही लोग शामिल हैं, जिन्हें सरकार ने अतिçथयों के स्वागत का जिम्मा सौंपा है। असेü से चल रहे ठगी के इस `ख्ोल´ में एक साथ कई संगठन (चैन बनाकर) काम कर रहा है। दिल्ली ही नहीं देश के सभी पर्यटन स्थलों पर ऐसा ही होता है। अतिçथ देवो भव: का मूलमंत्र रटने वाले पर्यटन विभाग एवं सरकार भी इससे वाकिफ है, लेकिन वह चैन को तोड़ने में असमथü हैं। क्योंकि, हर कोई `चांदी का जूता´ कमीशन में चाहता है। यह सारा `ख्ोल´ कमीशन के लिए होता है। लेकिन, लूटा जाता है सीधा-साधा विदेशी पर्यटक। आप भी सुनकर हैरान हो जाएंगे कि विदेशी पर्यटकों के साथ देश में क्या सलूक किया जाता है। उन्हें ख्ारीदारी के लिए चुनिंदा दुकानों/शोरूमों में ले जाया जाता है, और 500 रुपये की चीज 5000 रुपये में दिलाई जाती है। दिल्ली में 150 से ज्यादा बड़ी टे्रवल एजेंसियां हैं, जो 20 से 25 बड़े शोरूमों से जुड़ी हैं। विदेशी अतिçथयों को उन्हीं दुकानों में ले जाते हैं, जहां से उनका कमीशन फिक्स हैं। दिल्ली के बाहर ख्ाजुराहो, वाराणसी, आगरा, जयपुर, चंडीगढ़, अमृतसर, जोधपुर, उदयपुर, कोलकाता, हिमाचल, श्रीनगर आदि पर्यटन स्थलों पर भी यही हाल है। मजेदार बात यह है कि एक विदेशी पर्यटक देश में जैसे ही कदम रख्ाता है उसके साथ 5 एजेंसियां जुड़ जाती हैं। वह जहां-जहां चलता है, आगे पीछे लोग लग जाते हैं। अगर वह एक जगह दुकान में ख्ारीददारी करता है तो तकरीबन 47 फीसदी कमीशन इनका बनता है। इसमें 10 फीसदी ड्राइवर, 10 फीसदी टूरिस्ट गाइड, 10 प्रतिशत ट्रेवल एजेंसी, 10 प्रतिशत गाड़ी मालिक एवं साढ़े 7 फीसदी कमीशन दुकान के दलाल को मिलता है, जो स्टेशन से ही गाड़ी के पीछे चिपक जाता है। कमीशन के कारण ही गाड़ी मालिक ड्राइवर को तनख्वाह नहीं देता। वह साफ कह देता है कि जाओ टूरिस्ट को लूटो...।`देवताओं´ को ख्ाुलेआम लूट रहा है गिरोह विदेशी मेहमानों को वषोZ से सेवा दे रहे राजधानी टूरिस्ट ड्राइवर वेलफेयर एसोसिएशन के सेक्रेटरी बलवंत सिंह की माने तो `देवताओं´ को ख्ाुलेआम लूटा जा रहा है। इसमें एक गिरोह पूरी तरह से काम कर रहा है। जो बड़े ही शातिर अंदाज में रोजाना सैकड़ों विदेशी पर्यटकों को लूट रहा है। वह कहते हैं कि अतिçथयों को ठगने वाले ट्रेवल एजेंसियों एवं दुकानों को सील कर देना चाहिए। वह आवाज भी उठा चुके हैं, लेकिन कोई नहीं सुनता।
`सेफ्टी एक्ट´ बना रही है सरकार दिल्ली टूरिज्म के आला अधिकारी इस बात से वाकिफ हैं कि विदेशी मेहमानों के साथ ठगी होती है। तभी तो इसे रोकने के लिए `टूरिज्म शेफ्टी एक्ट´ बनाया जा रहा है। दिल्ली टूरिज्म के असिस्टेंट डायरेक्टर डीके गुप्ता की माने तो शेफ्टी एक्ट बहुत जल्द (कामनवेल्थ गेम्स से पहले) तैयार लागू हो हो जाएगा। प्रपोजल पाइपलाइन में है, बस घोषणा होना बाकी है। इसके बाद दिल्ली में विदेशी मेहमानों को ठगी का शिकार नहीं होना पड़ेगा।
--सुनील पाण्डेय-

jai shri ram

jai shri ram