इश्क में हस्तीं मिटाने पर तुले कुंवारे
ज्रमाने का देखो चलन कैसे-कैसे। अरे भईया अब तो कलयुग पूरी तरह से आ गया है। इश्क में अंधे कुंवारे अपनी पार्टनर के साथ सैक्सुअल संबंध बनाने के लिए हस्तीं मिटाने पर तुले हैं। बड़े महानगरों एवं हाईटेक राजधानियों में इसका ट्रेंड सा चल पड़ा है। ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है जो अपनी पहचानं (मरदानगी) मिटाने के लिए नसबंदी करवा रहे हैं। कुछ पार्टनर के दबाव में तो कुछ अन्य कारणों से। नसबंदी करवाने के लिए ऐसे कुंवारों युवक चोरी छिपे अस्पतालों में पहुंच रहे हैं जो ड्रगिस्ट हैं और पैसे की जरूरत है। चूंकि, भारत सरकार पुरुष नसबंदी पर प्रोत्साहन राशि देती है, इसलिए ज्यादातर कुंवारे पैसे की लालच में शादीशुदा बताकर नसबंदी करवा रहे हैं। कुंवारें युवा इसलिए भी बेधड़क नसबंदी करवा लेते हैं कि बाद में पुन खोलवा लेंगे। ऐसी सुविधा भी है और होता भी है। हालांकि, भारत में कुंवारों की नसबंदी पर पाबंदी है। बावजूद इसके बदले ट्रेंड में सब कुछ जायज है। सरकारी तौर पर उन्हीं पुरुषों का नसबंदी होता है, जो दो बच्चे के बाप हैं और स्वेच्छा से नसबंदी करवाना चाहते हैं। राजधानी दिल्ली की बात करें तो नसबंदी सेंटरों में रोजाना कई कुंवारे नसबंदी करवाने पहुंच जाते हैं। दिल्ली के लोकनायक अस्पताल की बात करें तो कुछ दिनों पहले 4 दिन में 6 कुंवारे नसबंदी करवाने पहुंचे। कौंसलिंग के दौरान कुंवारा होने का खुलासा होने पर केस कैंसिल कर दिया। 21 साल के राहुल देव अच्छे परिवार और अच्छी कंपनी से जुड़े हैं। लेकिन आईटी सेक्टर की उनकी पार्टनर (प्रेमिका) के कहने पर लोक नायक अस्पताल पहुंच गए नसबंदी करवाने। राहुल ने बताया कि वह इसलिए नसबंदी करवा रहा है, क्योंकि उनकी प्रेमिका सैक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए तैयार नहीं हो रही है। उसका तर्क था कि नसबंदी करवा लेने से उसकी प्रेमिका को सैक्सुअल रिलेशन बनाने में कोई खतरा नहीं होगा। बाद में नसबंदी को दोबारा खोलवा लेगा। राहुल की तरह ही चंडीगढ़ के अर्शदीप सिंह, चेन्नई के आर शंकरन एवं लुधियाना के गुरप्रीत सिंह भी पार्टनर की खुशी और अपनी हवस पूरी करने के लिए अपनी हस्तीं मिटाने डाक्टरों की शरण में पहुंचे थे। दिल्ली के ही संजय गांधी अस्पताल में पिछले महीने एक 20 साल के कुंवारे प्रदीप कुमार ने नसबंदी करवा ली थी। इस महीने उसकी शादी होने वाली थी, घर वालों को पता चला तो उसे अस्पताल लेकर भागे। हालांकि डाक्टरों ने प्रदीप की मां के हस्तक्षेप पर नसबंदी खोल दी। बगैर शादीशुदा के नसबंदी कराने वाले कुंवारों का जैसे ट्रेंड चल पड़ा हो। कानून की नजरों में गलत जरूर है, लेकिन कुंवारों के लिए इश्क में सबकुछ जायज है। सैक्सुअली रिलेशन के बदले ट्रेंड के अलावा ड्रगिस्ट किस्म के कुंवारे महज इसलिए नसबंदी करवा रहे हैं, कि उन्हें सरकार द्वारा दिए जाने वाला प्रोत्साहन राशि (1300 रुपये) मिलेगा। लोक नायक अस्पताल में ऐसे केस रोजाना 2-3 पहुंच जाते हैं। यह ट्रेंड देश के सभी बड़े महानगरों में फैल चुका है, जहां नशे के सौदागरों ने अपना जाल फैला रहा है। दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय हास्पिटल में कुछ दिन पहले एक ऐसे ड्रगिस्ट (सुरेन्द्र पाल) ने नसबंदी करवा ली, जिसकी मात्र कुछ दिन पहले शादी हुई थी। पत्नी को जब पता चला तो बवाल खड़ा हो गया। वह तुरंत घरवालों को लेकर अस्पताल पर धावा बोल दिया। बाद में इसका खुलासा हुआ कि सुरेन्द्र पाल अपनी मर्जी से झूठ बोल कर पैसे की लालच में नसबंदी करवाई है। उसे ड्रग्स के लिए पैसे ही जरूरत थी। सुरेन्द्र पाल जैसे अनगिनत कुंवारे ड्रगिस्ट पैसे की लालच में नसबंदी करवा रहे हैं। एक अस्पताल मना कर देगा तो दूसरे अस्पताल पहुंच जाएगा। पुरुष नसबंदी की व्यवस्था देश के सभी बड़े अस्पतालों में है। साथ ही परिवार कल्याण मंत्रालय इसके लिए कैंप भी लगाता है। अस्पतालों में नसबंदी कराने आने वालों का चूंकि घरेलू रिकार्ड बहुत ज्यादा नहीं मांगा जाता, इसलिए कुंवारे इसका फायदा उठा लेते हैं। वैसे भी अगर सरकारी अस्पताल नहीं करेगा तो निजी अस्पतालों में वह नसबंदी करवा लेते हैं। ऐसा जानकारों का भी मानना है। लेकिन, कानून की नजरों में कुंवारों की नसबंदी होना गलत है। राजधानी में पुरुष नसबंदी के विशेषज्ञ डाक्टर एचसी दास कहते है कि देश में कुंवारों की नसबंदी के लिए कोई छूट या नियम नहीं है। यह व्यवस्था तो सिर्फ शादीशुदा एवं 2 बच्चों के पिता के लिए लागू है। लेकिन, आजकल कुंवारे लोगों द्वारा नसबंदी करवाने का जैसे ट्रेंड चल गया हो। अक्सर अस्पतालों में पहुंच जाते हैं। कोई अगर झूठ बोलकर और नाम बदल कर नसबंदी करवा ले तो पता भी नहीं चल पाता। वह कहते हैं कि बाद में नसबंदी खुल जाती है, इसलिए लोग डरते नहीं।पुरुष नसबंदी के माहिर डाक्टर चंदन भी मानते हैं कि कुंवारे लोग नसबंदी करवाने आते हैं। हालांकि काउंसलिंग के बाद उन्हें पता चलने पर भगा दिया जाता है। बावजूद इसके वह अस्पताल में नसबंदी करवाने पहुंच जाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रो एनके चड्ढा कहते हैं कि नसबंदी करवाने वाले कुंवारे क्वसेकोपैथं किस्म के होते हैं। इनमें किसी भी महिला को देखते ही सैक्सुअल संबंध बनाने की इच्छा जागृति होती है। एक पार्टनर से ऐसे लोगों का मन नहीं भरता। कानून के जानकार एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी की अलग राय है। वह कहते हैं कि कोई भी इंसान जो बालिग है, वह स्वतंत्र है। कुछ भी कर सकता है। वह नसबंदी करा रहा है, कोई अपराध नहीं। इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। साधो यह कैसा चलन है। ऐसा तो कभी होता नहीं था, तो अब ऐसा चलन कहां से आ गया। बिना घर बसाये, सात फेरे लिए ही अपनी मर्दानगी को सरेंडर कर रहे हैं युवा। कहीं यह हाईटेक जमाने का कसूर तो नहीं। कुछ तो है जो भागदौड भरी जिंदगी में युवाओं को घर से बसाने से दूर ढकेल रही है। कहीं किशोरियां आपस में ही शादी रचा ले रही हैं तो कहीं लडके लडके आपस में समलैंगिक विवाह रचा रहे हैं। रिषियों और मुनियों के इस देश में पाश्चात्य संस्किती पूरी तरह से हावी होती जा रही है। इसे रोकना होगा, अन्यथा अनर्थ हो जाएगा।
लगे रहिए सुनील भाई! इस खबर को पढ कर कम से कम वरूण गांधी के कलेजे को तो ठंडक मिली होगी ।
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट कब डाल रहे है सुनील भाई ?
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