देश के सबसे सपन्न और खुशहाल राज्य पंजाब के अमृतसर जैसे शहर के गांवों की लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान एक बड़ी पीड़ा से गुजरना पड़ता है, क्योंकि उनके पास सैनेटरी नैपकिन के तौर पर प्रयोग करने के लिए कोई कपड़ा नहीं होता। आपको यह जानकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन, यह कड़वी सच्चाई उन तीन सगी बहनों की है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि उन तीनों के पास एक ही अंडर गारमेंट है, जिसे वह तीनों आपस में बांटती हैं।
ये कहानी पंजाब के कई इलाकों की तो है ही, देश के बिहार, झारखंड, उड़ीसा, हरियाणा व अन्य राज्यों के ग्रामीण व पिछड़े इलाकों में भी देखने को मिल जाएगी। गरीबी व कपड़े की कमी के कारण महिलाएं व लड़कियां मासिक धर्म के दौरान मिट्टी, पोलिथीन, राख व अखबार तक को सैनेटरी नैपकिन के तौर पर प्रयोग कर लेती है। इससे उनका काम तो किसी तरह चल जाता है लेकिन यह महिलाएं व लड़कियां कई गंभीर बीमारियों का भी शिकार हो जाती हैं। यह चौंकाने वाला तथ्य महिलाओं के लिए काम करने वाली एक निजी संस्था के हैं, जो लोगों के पुराने कपड़े मांग कर महिलाओं व लड़कियों के लिए सैनेटरी नैपकिन बनाकर बांटने का काम करती है।
अब सवाल यह पैदा होता है जिन लोगों के पास तन ढ़कने के लिए कपड़ा नहीं है, वो मासिक धर्म के दौरान सैनेटरी नैपकिन के तौर पर प्रयोग करने के लिए कपड़ा कहां से लाए। इसी तरह की महिलाओं की सहायता के लिए गूंज नामक संस्था जमीन पर उतरी है। संस्था के संस्थापक अंशु गुप्ता कहते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व जब उन्होंने पंजाब में इस दिशा में काम करना शुरू किया तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं कि किस तरह एक कपड़े के टुकड़े के लिए लड़कियां व महिलाएं तरस रही है। सबसे पहले उनको जालंधर शहर में मदद वकीलों की तरफ से मिली, जिन्होंने एक पुराने कपड़ों की दुकान पर अपनी पुरानी शर्ट व कोट दे दिए थे। इसी तरह लोग जुडऩे लगे और अपने पुराने कपड़े देने लगे। पंजाब से शुरू हुआ उनका अभियान, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, बिहार,उड़ीसा सहित आसपास के कई राज्यों में काम कर रहा है। वह लोगों से उनके पुराने कपड़े एकत्रित करते हैं और उनको साफ करके उनसे सैनेटरी नैपकिन बनवाते हैं। जिनको गरीब व पिछड़े इलाकों की में बंटवाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस तरह के मामले सिर्फ गरीब राज्यों में ही नहीं है। देश के कई सम्रद्घ राज्यों में भी महिलाओं को इस तरह सैनेटरी नैपकिन के लिए तरसते देखा जा सकता है। गुप्ता के मुताबिक गरीबी व कपड़े की कमी के कारण महिलाएं व लड़कियां मासिक धर्म के दौरान मिट्टी, पोलिथीन, राख व अखबार तक को सैनेटरी नैपकिन के तौर पर प्रयोग कर लेती है। जिससे यह महिलाएं व लड़कियां कई गंभीर बीमारियों का भी शिकार हो रही है। वे लोगों से यही अपील करते हैं कि वह अपने पुराने कपड़े एकत्रित करके उनकी संस्था तक पहुंचा दे ताकि वह उनको आगे जरूरत मंदों तक पहुंचा सके। किसी के पुराने कपड़े उन महिलाओं के जीवन में खुशी ला सकते हैं जो तन ढ़कने के लिए तरस रही हैं और हर महीने एक प्राकृतिक आपदा की तरह मासिक धर्म को झेल रही हैं। इसलिए वह आम लोगों से आग्रह करते हैं कि गरीब लोगों को सर्दी से बचाने व महिलाओं की मदद करने के लिए अपने पुराने कपड़े एकत्रित करके उनकी संस्था तक पहुंचाएं। संस्था के लिए कैंप आयोजित करने के लिए उनको मेल ऐड द रेट गूंज डॉट आेआरजी पर संपर्क कर सकते है।
देश के बाकी राज्यों से उलट दिलली सरकार ने स्कूली लडकियों के लिए सैनेटरी नैपकिन की अनुठी योजना शुरू
कर एक नई शुरुआत कर दी है। इससे कुछ हद तक गरीब लडकियों को फायदा तो होगा ही। दिलली सरकार की इस पहल की तारीफ करनी चाहिए और देश के सभी राज्यों को इस बारे तक तत्काल सोचना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में हास्य व्यंग्य की जड़ें
9 वर्ष पहले
और भी गम हैं...
जवाब देंहटाएंकृपया शब्द पुष्टिकरण हटाने पर विचार करें.
dhanywaad apka ye article dene ke liye. ek bar is link se puri trha रूबरू ho aap bhi.
जवाब देंहटाएंye adhuri knowledge hai.
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Its a very good article keep update with hindi news Bhaskar Hindi
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लेख।
जवाब देंहटाएंआगे भी ऐसे ही लिखते रहिये।
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जवाब देंहटाएंAWESOME POST THANKS FOR SHARE I LOVE THIS POST
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