लो भैइया, देखो अब इ का हो रहा है।जमाने का देखो चलन कैसे-कैसे…। लो भइया अब सचमुच कलयुग धरती पर उतर आया है। धरती पर जब पुरुष कंडोम उतारा गया तो यह तर्क दिया गया कि ये परिवार नियोजन का सबसे बडा साधन होगा। कुछ हद तक भैइया ये कामयाब भी हुआ। इसके बाद जमाना बदला और आधुनिक लोगों के लिए नई खोज हुई और महिलाओं का कंडोम उतार दिया गया। यहां तक तो ठीक था, क्योंकि इसका मतलब और मकसद दोनों क्लीयर था। लेकिन भैइया अब तो हद ही हो गई है। पूछो कैसे, तो सुन लो अब गे-स्पेशल कॉन्डम बनाने की तैयारी चल रही है। एक कंपनी ने गे कपल्स के लिए स्पेशल कॉन्डम बनाने की प्लानिंग की है। एड्स जैसी बीमारियों के बचाव में कारगर इस कॉन्डम के बाजार में आने से पहले ही इसकी उपयोगिता पर बहस शुरू हो गई है। कोर्ट ने दो एडल्ट समलैंगिकों के बीच सहमति के आधार पर बनने वाले फिजिकल रिलेशन को वैधता दे दी है। ऐसे में अब वे खुलेआम अपनी पहचान जाहिर करने लगे हैं और जाहिर है, ऐसे संबंधों में इजाफा हो रहा है। हालांकि, अपनी सेक्शुअल चॉइस के अनुसार पार्टनर चुनने की आजादी अच्छी बात है, लेकिन इसमें भी शक नहीं कि होमोसेक्शुअलिटी से एड्स जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है। सेक्शुअल डिजीज के मामले में बेहद संवेदनशील देश भारत में पहले से ही 2।31 मिलियन एड्स रोगी मौजूद हैं। ऐसे में, कंपनी ने गे-कपल्स के लिए स्पेशल कॉन्डम बनाने की घोषणा की है। लो अब लो, कहते हैं कि गे कपल्स के बीच बिना कॉन्डम के रिलेशन बनाने से एचआईवी का खतरा बना रहता है, इसीलिए उनके लिए स्पेशल कॉन्डम बनाने की जरूरत महसूस की गई। जानकार मानते हैं कि बाजार में मौजूद कॉन्डम गे कपल्स की जरूरतों के मुताबिक नहीं है। क्या पुरुष होमोसेक्शुअल्स को सचमुच खास कॉन्डम की जरूरत है? गे कम्यूनिटी के एक मेंबर रोहित बताते हैं, 'मैं और मेरा पार्टनर सेक्शुअल डिजीज को लेकर बेहद सावधान रहते हैं। इसलिए रिलेशन बनाते वक्त हम लोग हमेशा कॉन्डम का इस्तेमाल करते हें। लेकिन ऐनल के हार्ड होने की वजह से कई बार कॉन्डम फट जाता है, जिससे सेक्शुअल डिजीज का खतरा बना रहता है। ऐसे में अगर हमारे लिए कोई स्पेशल कॉन्डम बनाया जा रहा है, तो हमें निश्चित रूप से उसका फायदा होगा।' हालांकि, गे कम्यूनिटी के कुछ लोग इस तरह के स्पेशल कॉन्डम का विरोध भी कर रहे हैं। जाने-माने गे ऐक्टिविस्ट कहते हैं, 'मेरी राय में गे कपल्स के लिए स्पेशल कॉन्डम बेहद बेवकूफी भरा प्रयोग है। आपको बता दूं कि यह प्रयोग इससे पहले मैक्सिको में भी हो चुका है, जो पूरी तरह फ्लॉप साबित हुआ है। मैं इस तरह के कॉन्डम बनाने वालों से पूछना चाहूंगा कि हमारे देश में जहां लोग मेडिकल स्टोर से कॉन्डम खरीदकर लाने में ही शर्माते हैं, वहां गे कपल्स अपने लिए स्पेशल कॉन्डोम कैसे खरीदेंगे?' ये सौ फीसदी सच बात है। अभी लोग कंडोम खरीदने में कतराते हैं। आखिर कुछ न कुछ तो करना ही होगा। जानकार कहते हैं कि मौजूदा कॉन्डम में भी कोई कमी नहीं है। कॉन्डम के मामले को लेकर एक कमिटी भी बनी थी, जिसे मौजूदा कॉन्डम में भी कोई कमी नहीं दिखी। दरअसल, ऐनस में चिकनाई नहीं होती, जिस वजह से मौजूदा कॉन्डम ज्यादा देर टिकते नहीं। लिहाजा सरकार को मौजूदा कॉन्डम के साथ ही चिकनाई युक्त जेली के पैकेट उपलब्ध कराने चाहिए।' बंगलोर से जुडे गे समर्थक राजनीश कहते हैं, 'मुझे इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। संबंधित कंपनी की घोषणा से तो ऐसा ही लग रहा है कि वे हमारे हित के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन अभी किसी फैसले तक पहुंचने से पहले हमें उनकी भावना को जांचना होगा।' वहीं, दूसरी ओर इन कॉन्डम से नॉर्मल सेक्शुअल चॉइस वाले लोगों के भी ऐनल सेक्स की ओर आकर्षित होने की आशंका जताई जा रही है।रिलेशनशिप विशेषज्ञ कहते हैं, 'खास तरह के कॉन्डम गे कम्यूनिटी के लिए तो फायदेमंद साबित हो सकते हैं, लेकिन बाकी सोसायटी को इससे नुकसान ही होगा। दरअसल, हमारी सोसायटी में लोग हमेशा नई चीजों को लेकर उत्साहित रहते हैं। ऐसे में वे इस स्पेशल कॉन्डम को भी जरूर आजमाकर देखना चाहेंगे। इस तरह से समाज में समलैंगिकता को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि यह बात बहुतों को हाइपोथेटिकल लग सकती है, लेकिन ऐसा वास्तव में है।'हम तो कहते हैं भैइया इ घोर कलजुग है, कुछ भी हो सकता है। जब समाज में ऐसे ऐडे तिरछे लोग पैदा हो रहे हैं तो उनके कंपनियां क्यों पीछे रहें। जब इस प्रजाति के लोग खुलेआम सडकों पर हाथों में हाथ डाले घूम सकते है, तो उन्हें कतई शर्म नहीं होगी गे-स्पेशल कंडोम खरीदने में। और शर्म हो भी क्यों, ये तो अच्छी बात है। चलो अच्छा है कम से कम उन्हें ही देखकर हमारे समाज के लोग बेझिझक होकर कंडोम खरीद तो सकते हैं।
भारतीय साहित्य का अभिन्न हिस्सा
समलैंगिक प्यार कई भारतीय फिल्मों के लिए इन दिनों एक विषय हो सकता है, लेकिन इस विषय पर 2000 साल से अधिक अवधि तक रची गई रचनाएं बताती हैं कि यह उत्तारोत्तार समृद्ध हुआ है। साहित्य में इसे कई रूपों में स्वीकार किया गया है और यह भारतीय साहित्य का अभिन्न हिस्सा रहा है।
रूथ वनिता और सलीम किदवई द्वारा संपादित सेम सेक्स लव इन इंडिया: ए लिटरेरी हिस्ट्री भारतीय साहित्य की 2000 साल से अधिक अवधि की रचनाओं में व्यक्त समलैंगिकों के बीच के प्रेम को प्रस्तुत करता है। दोनों ने एक दर्जन से अधिक भाषाओं और हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम और आधुनिक काल्पनिक परंपराओं पर इस दृष्टि से काम किया। इसमें धार्मिक पुस्तकों न्यायशास्त्र और काम संबंधी शोध, कथा साहित्य, मध्यकालीन इतिहास आधुनिक उपन्यासों से जीवनी संक्षिप्त कहानी पत्र संस्मरण नाटक और कविताओं को चुना गया है। ऋग्वेद से लेकर विक्रम सेठ, इस्मत चुगतई और भूपेन खाखर जैसे आधुनिक लेखक और कलाकार भी इसमें अपनी मौजूदगी दर्शा रहे हैं। पेंग्विन द्वारा प्रकाशित यह किताब एशियाई और विश्व साहित्य के गहन अध्ययन का अवसर देती है।
पुस्तक के अनुसार भारतीय परंपरा में भी महिला महिला के बीच और पुरूष पुरूष के बीच प्रेम का उल्लेख है। दो लोगों के बीच प्राथमिक और काम आकर्षण चाहे वे पुरूषों या महिलाओं के बीच हो यह शारीरिक संबंधों में बदल भी सकता है और नहीं भी बदल सकता है। वनीता लिखती हैं कि इस वजह से हमारा शीर्षक प्यार पर केंद्रित है न कि शारीरिक संबंध पर।
वे लिखती हैं कि ऐसे कई मामलों में जहां इस तरह के लगाव इतिहास साहित्य या पौराणिक ग्रंथों में मिलते हैं उनमें हमारे पास इसे जानने का कोई जरिया नहीं होता है कि उनमें शारीरिक संबंध था भी या नहीं। (साभार)